दहेज प्रथा पर कविता – Poem on Dahej Pratha in Hindi

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दहेज प्रथा पर कविता
Poem on Dahej Pratha in Hindi

जबसे पैदा होती है बेटी, तो एक ही बात होती है जमाने में,
एक बाप लग जाता है, तब से दिन रात कमाने में…
कि जैसे भी हो पर दहेज तो कैसे न कैसे जुटाना है,
और अपनी प्यारी बिटिया को उस दहेज से विदा कराना है…।।

तब बड़ा मुश्किल हो जाता है खुद को संभालना,
और दहेज के असहनीय दर्द से खुद को निकालना…
जब लड़के का बाप कहता है लड़की के बाप से,
कि कुछ शादी के बारे में बातें हो जायें आप से…।।

तो लड़की के बाप का दिल बैठ जाता है,
और अचानक से गला सूख जाता है…
धड़कने तब एकाएक तेज चलने लगती है,
और दिल में केवल एक ही बात उठती है…।।

कि लड़के का बाप अब दहेज की बात करेगा,
न जाने कितनी रकम की माँग करेगा…
जाने मैं इतनी रकम जुटा पाऊंगा या नहीं,
न जाने कितना कुछ गिरवी रखना पड़ेगा कहीं…।।

और न जाने कितने ही दिल बैचेन करने वाले,
सवाल घनघोर मन में तब लगते हैं मंडराने…
वो वक्त न जाने कितना कहर ढहाता है,
बस जान न निकले बाकी सब हो जाता है…।।

एक डरावने सपने से डरावना होता है वो पल,
एक लड़की का बाप सोचे कैसे जाए ये टल…
आँखें चौंधिया देने वाला उजाला भी अंधेरा सा जान पड़ता है,
और बेटी की शादी का सपना किसी डरावने सपने सा लगता है…।।


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